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इस पवित्र महीने में ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप एवं गंगा, यमुना या किसी भी पवित्र नदी में सूर्योदय से पूर्व स्नान करना शुभ माना गया है। 

इस माह में भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी, तुलसी जी एवं चंद्रदेव की पूजा की जाती है।

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कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन से मार्गशीर्ष माह शुरू होता है, इस वर्ष 6 नवंबर को मार्गशीर्ष माह शुरू होगा जिसका समापन 04 दिसंबर को मार्गशीर्ष पूर्णिमा के साथ होगा।

यह महीना ईश्वर के प्रति भक्ति, पवित्रता और कृतज्ञता का प्रतीक है, मार्गशीर्ष महीना जप, तप और ध्‍यान का महीना भी कहा जाता है।
गुरु नानक जयंती को गुरु पर्व या प्रकाश पर्व के रूप में भी मनाया जाता है, इस वर्ष गुरु नानक देव जी की 556वीं जयंती मनाई जाएगी।

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इस दिन गंगा स्नान, दान-पुण्य और दीपदान का विशेष महत्व होता है।

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कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा या देव दीपावली भी कहा जाता है, यह दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की आराधना के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।

इस दिन भगवान शिव, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। वाराणसी में कार्तिक पूर्णिमा का दिन देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है, जिसे देवताओं की दिवाली कहा जाता है।
इस वर्ष देव दीपावली 5 नवंबर को मनाई जाएगी, जिसका पूजन समय शाम 5:15 बजे से 7:50 बजे तक है।

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देव दीपावली को देवताओं की दिवाली कहा जाता है, मान्यता है कि इस दिन देवता काशी के घाटों पर दीप जलाकर उत्सव मनाते हैं।

कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान का विशेष महत्व है, इस दिन घर के मुख्य द्वार, तुलसी के पौधे, पीपल, आंवले और मंदिर में दीप जलाने से जीवन में शुभता आती है।
बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु की संयुक्त रूप से पूजा की जाती है। बैकुंठ चतुर्दशी का पर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है।
उदयातिथि के अनुसार व्रत 1 नवंबर को रखा जाएगा, पारण का समय 2 नवंबर को दोपहर 1:11 से 3:23 तक रहेगा।

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देवउठनी एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी और देवुत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं, और सभी शुभ कार्यों जैसे विवाह, सगाई, मुंडन और गृह प्रवेश की शुरुआत होती है।

देवउठनी एकादशी के ठीक अगले दिन तुलसी का विवाह भी संपन्न कराया जाता है, इस वर्ष देवउठनी एकादशी 1 नवंबर को सुबह 9:11 बजे शुरू होगी और 2 नवंबर को सुबह 7:31 बजे समाप्त होगी।
इस साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 31 अक्टूबर को सुबह 10 बजकर 03 मिनट तक है। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी पर पूर्वाह्न काल सुबह 06 बजकर 32 मिनट से लेकर 10 बजकर 03 मिनट तक है।

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अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे भोजन पकाया भी जाता है और खाया भी जाता है, महिलाएं इस पूजा को अपने बच्चों के खुशहाल जीवन के लिए करती हैं।
देवउठनी एकादशी से दो दिन पूर्व अक्षय नवमी मनाई जाती है, जिसमें आंवले के पेड़ की पूजा कर उसके नीचे भोजन बनाकर भगवान शिव और विष्णु को भोग लगाया जाता है। इस वर्ष 31 अक्टूबर को अक्षय नवमी मनाई जाएगी।

इस दिन को आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है, इस दिन किये गए शुभ कार्य, दान-पुण्य का फल अक्षय यानी अनंत काल तक बना रहता है।
गोपाष्टमी के दिन गायों और उनके बछड़ों को सजाया जाता है. साथ ही उनकी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस वर्ष गोपाष्टमी का पर्व 30 अक्टूबर, 2025 बृहस्पतिवार के दिन मनाया जायेगा।

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कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि के दिन गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाता हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गोपाष्टमी के दिन से ही भगवान श्री कृष्ण ने गौ-चारण अर्थात गायों को चराना शुरू किया था।

इस दिन किसी गौशाला में जाकर गायों को भोजन कराना और उनकी सेवा करना अत्यंत शुभ माना जाता है, इससे पापों का नाश होता है और परिवार में सौभाग्य बढ़ता है।
25 अक्टूबर- नहाय खाय (पहला दिन)
26 अक्टूबर-खरना (दूसरा दिन)
27 अक्टूबर- संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन)
28 अक्टूबर - ऊषा अर्घ्य (चौथा दिन)

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यह पर्व प्रकृति, जल और सूर्य की उपासना से जुड़ा है, जो मानव जीवन में ऊर्जा और सकारात्मकता के महत्व को दर्शाता है। 

छठ पूजा की शुरुआत शनिवार 25 अक्टूबर को नहाय खाय के साथ शुरू होगी, जो कि 28 अक्टूबर ऊषा अर्घ्य तक चलेगी।
छठ पूजा भारतीय परंपरा का अद्भुत पर्व है, यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया की आराधना का प्रतीक है, छठी मैया जीवन, ऊर्जा और सुख-समृद्धि का वरदान देती हैं।

इस व्रत में सूर्य देव को दो बार अर्घ्य दिया जाता है, जिसमें पहले ढलते सूर्य को और अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत पूरा होता है।
पंचमी बेला का मुहूर्त 26 अक्टूबर के दिन सुबह 06 बजकर 29 मिनट से सुबह 10 बजकर 13 मिनट तक है। उदया तिथि के अनुसार, लाभ पंचमी का पर्व 26 अक्टूबर, रविवार के दिन मनाया जाएगा।

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लाभ पंचमी का त्योहार दिवाली के पांचवें दिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन व्यापारी अपने नए बहीखातों की पूजा करते हैं और उस पर 'शुभ' और 'लाभ' लिखकर नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत करते हैं।

लाभ पंचमी की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन और व्यवसाय में लाभ होते हैं, इस दिन भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा करने से व्यापार में उन्नति और लाभ होता है।
ॐ गं गणपतये विघ्नविनाशिने नमः 🙏
इस दिन आंगन या मुख्य द्वार पर गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत एवं कृष्ण जी की आकृति बना कर इन्हें रोली, चावल, बताशे और जल अर्पित कर के पूजा की जाती है।

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जब इंद्रदेव ने क्रोधित होकर ब्रज पर मूसलधार वर्षा करनी शुरू कर दी थी, तब भगवान कृष्ण ने ब्रजवासी और गौवंश की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा उंगली पर उठा लिया। वे सात दिनों तक पर्वत को थामे रहे, बिना अन्न-जल ग्रहण किए, ताकि ब्रजवासी और गौवंश सुरक्षित रहें।
हर साल कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन गोवर्धन पूजा की जाती है, गोवर्धन पूजा के दिन भगवान को 56 भोग अर्पित करने की परंपरा है।
समृद्धि की प्रतीक महाविद्या कमला की उपासना स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति तथा नारी-पुत्रादि के सौख्य के लिये की जाती है। देवी कमला को लक्ष्मी तथा षोडशी भी कहा जाता है।

कनकधारा स्तोत्र और श्रीसूक्त का पाठ, कमलगट्टे की माला पर श्री मंत्र का जप, बिल्वपत्र तथा बिल्वफल के हवन से कमला महाविद्या की विशेष कृपा प्राप्त होती है।